कुछ शेर ख्यालों में अटके रहते हैं . कुछ ख्याल दिमाग में बैठ जाते हैं.

Wednesday 23 November 2011

निराशा : अहमद फराज़ .

हम  चराग -ए -शब  ही  जब  ठहरे तो फिर  क्या सोचना
रात  थी  किसका  मुक़द्दर  और सहर  देखेगा  कौन ?

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