कुछ शेर ख्यालों में अटके रहते हैं . कुछ ख्याल दिमाग में बैठ जाते हैं.

Sunday 18 September 2011

तज़ुर्बा .

धूप में चल कर तो देखो,तजुर्बा हो जाएगा,
कद तो बढ़ सकता नहीं,साया बड़ा हो जाएगा.

मुश्किल .

साथ उसके रह सके, न बगैर उसके रह सके 
ये रब्त है चराग का कैसा हवा के साथ.

Thursday 8 September 2011

ग़ालिब : फ़ायदा.

हमारे  शेर  हैं  अब  सिर्फ  दिल्लगी   के  'असद'
खुला  की  फ़ायदा  अर्ज़ -ए -हुनर  में  ख़ाक  नहीं.

Monday 5 September 2011

ग़ालिब - अज़ीज़ .

क्यूँकर   उस  बुत  से  रखूँ  जान  अज़ीज़
 क्या  नहीं  है  मुझे  ईमान  अज़ीज़ ?

दिल  से निकला  प न  निकला  दिल से
है तेरे  तीर  का  पैकान  अज़ीज़

ताब  लाये  ही  बनेगी  ‘ग़ालिब ’
बाकिया  सख्त  है और  जान अज़ीज़

Saturday 3 September 2011

साहिर : आई -गयी बातें .

 उनका ग़म ,उनका तस्सवुर ,उनके शिकवे अब कहाँ ?
 अब तो ये बातें भी ऐ दिल ! हो गयी आयी -गयी .