कुछ शेर ख्यालों में अटके रहते हैं . कुछ ख्याल दिमाग में बैठ जाते हैं.

Monday, 5 September 2011

ग़ालिब - अज़ीज़ .

क्यूँकर   उस  बुत  से  रखूँ  जान  अज़ीज़
 क्या  नहीं  है  मुझे  ईमान  अज़ीज़ ?

दिल  से निकला  प न  निकला  दिल से
है तेरे  तीर  का  पैकान  अज़ीज़

ताब  लाये  ही  बनेगी  ‘ग़ालिब ’
बाकिया  सख्त  है और  जान अज़ीज़

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